आखिर क्यों रो रही है अपनी बेटियों के लिए माँ भारती? Why ..????

हजारो साल पुरानी सभ्यता और अनंत काल पुरानी संस्कृति वाला हमारा देश भारत जिसे हम सब भारतवासी भारत माता, माँ भारती जैसे उपनामों से सुशोभित करते हैं। उस भारत देश की महान संस्कृति जिसमें एक औरत को हम कभी दुर्गा, कभी लक्ष्मी कभी माँ सरस्वती तो कभी चंडी का स्वरूप मानते हैं, हमारे यहाँ लड़कियों से पैर नहीं छुवाते क्योंकि कहते हैं, कि लड़कियां बेटियां होती हैं और बेटियां माँ लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं।

लेकिन क्या हो रहा है आज इस देश में, आखिर क्यों भूल गए हम अपनी जड़ें, क्यों भूल गए हम के हम क्या हैं, आज जब छोटी-छोटी बच्चियां जिन्हें अपना नाम तक लेना नही आता जो इतनी मासूम हैं, की उनको देख कर जानवरों में भी मानवता की चमक आ जाये, फिर कौन हैं वो लोग जो इन मासूम फूलों को कुचलने में अपनी शान समझते हैं, कौन हैं वो जिनके कारण कभी निर्भया, कभी आसिफा तो कभी कोई और, छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर 80 90 साल की बूढ़ी औरतों तक के जिस्म को नोच खाते हैं वे लोग।

कौन है ये लोग? कहां से आते हैं ये लोग? ये लोग क्या हमारे आस-पास हमारे बीच नहीं है? आखिर क्यों करते हैं ऐसा ये लोग? कहाँ से आ जाती है लोगों में इतनी हैवानियत? इन सब सवालों के जवाब हमें खुद ढूंढने होंगे। देखो अपने आस पास क्या हम में से ही कोई तो नही? और अगर हाँ तो क्यों????

कहीं इसलिए तो नही क्योंकि शायद हम सोचते हैं बहोत गलत हुआ पर अच्छा है, मेरी बेटी मेरी बहन उस जगह नहीं थी। किसी लड़की को कोई हैवान देख रहा है, घूर रहा है, छेड़ रहा है, परेशान कर रहा है, तो हम कहते हैं मेरी नहीं है मुझे क्या? मेरी नहीं है मैं क्यों बोलूं? कोई कुछ नहीं बोल रहा कोई कुछ नहीं कर रहा तो मैं क्यो बोलू मैं क्यों करूं? मुझे क्या???????????????

और जब उसकी इज्जत उसकी जिंदगी उसका आत्मसम्मान सब तार-तार कर दिया जाता है तो हम निकल पड़ते हैं मोबत्तियाँ लेकर, हाथों में बड़े-बड़े बैनर लेकर जिनमे कुछ बड़े-बड़े नारे लिखे होते हैं,  चिल्लाते हैं, शोर मचाते हैं, चक्का जाम कर देते हैं और ऐसा करने वाले दरिंदो(बलात्कारियों) के लिए मौत की सजा की मांग करते हैं, संसद में हंगामा होता है, अखबारों में बड़ी-बड़ी लाइनें लिखी जाती हैं, न्यूज़ चैनलों पर लंबी-लंबी बहस की जाती है, और फिर सब शांत सब अपने अपने काम पर लग जाते हैं, फिर वही मुझे क्या?

क्या वो सजा जो हम उन दरिंदो के लिए मांग रहे हैं, उसके असल हकदार हम सब खुद नहीं है? हाँ हम सब देखो खुद को तुमने क्यों नहीं तब आवाज उठाई जब वो उसको घूर रहा था, तुम तब क्यों चुप थे जब वो उसे छेड़ रहा था परेशान कर रहा था, क्यों तुमने तब कुछ नहीं किया जब वो ऐसा करने की हिम्मत कर रहा था, अगर तुम तब चुप थे, तो तुमको कोई हक कोई अधिकार नहीं है अपनी खुद की बेटी या बहन के लिए इंसाफ मांगने का। जिस तरह तुम तब मुस्कुरा रहे थे, मजे ले रहे थे, वही तब भी करना जब उस जगह तुम्हारी अपनी बेटी, अपनी बहन हो। क्योंकि जब वो किसी और कि बेटी, किसी और कि बहन थी तब वो तुम्हारे लिए वो दूसरे धर्म की थी, वो दूसरे जाति की थी वो दूसरे शहर, दूसरे राज्य की थी तो फिर उस वक्त भी मत रोना जब वो तुम्हारी अपनी बेटी हो, तुम्हारी अपनी बहन हो।

आज हम लड़कियों से बोलते हैं घर से बाहर मत निकलो, हम कहते हैं किसी से बात मत करो, चेहरा ढक के रखो, घूंघट डाल के रहो, हिजाब/नकाब पहन के बाहर निकला करो क्योंकि लोगों की नजरें खराब हैं, अरे तो जिनकी नजर खराब है उनकी आंख को फोड़ो ना क्यों उसे सजा दे रहे हो जिसकी कोई गलती नहीं है। क्यों हम उनको नहीं सिखाते की लड़की टंच माल नहीं बल्कि माँ का स्वरूप है, क्योकि नहीं सिखाते के उसके बदन को नही उसके पैरों की ओर नजरें रखो क्योकि वो बेटी है और हमारी संस्कृति में बेटी माँ लक्ष्मी का स्वरूप होती है, वो बहन है और बहन माल नहीं जिम्मेदारी होती है।

याद है ना, ये वही देश है, जहाँ जब श्री राम को माता सीता के अपहरण के बाद  जंगल में उनके आभूषण(गहने) मिले थे तो उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि, “क्या तुम पहचानते हो ये तुम्हारी भाभी के ही आभूषण हैं ना?” तो लक्षमण जी जवाब देते हैं कि, “भैया मैं तो सिर्फ भाभी के पैरों में पहने जाने वाले नूपुर(बिछिया) को ही पहचानता हूँ, क्योकि मैंने अपनी भाभी के सिर्फ चरण ही देखे हैं।” आखिर क्यों और कैसे खत्म हो गई हमारी वो महान संस्कृति। आज हम कहते है कि,”लड़के है, लड़कों से गलतियां हो जाती हैं।” आखिर क्यों?

और आखिर में हमने क्यों अपनी बेटियों को कमजोर बना रखा है, क्यों हम उनको बार-बार अहसास दिलाते हैं के वो कुछ नही कर सकती, आज हमारी बेटियों की आदर्श कौन हैं, वो जिनको टीवी पर देखते तो हम सभी हैं, पर सबके सामने नहीं, मैं यहाँ किसी का भी नाम नहीं लूंगा, पर क्या इसमें गलती हम सबकी नहीं है कि, आज हम उनको रानी लक्ष्मी बाई, वीरांगना उदा बाई, बेगम हजरत महल, चाँद बीबी, रानी दुर्गावती, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, माँ दुर्गा और चंडी जैसा बनने के लिए प्रेरित नहीं करते। क्यों हमारी बेटियां आज उनको आदर्श मान बैठी हैं जिनका नाम भी चार लोगों के बीच लेते हुए असहज महसूस होता है। क्यो नही सिखाते हम उन्हें कि तुम शक्ति हो, तुम वीरता का पर्याय हो तुम अजेय हो।

आखिर क्यों? ढूंढिए खुद में इस क्यों का जवाब क्योंकि जब तक इस क्यों का जवाब नही मिल जाएगा हमारी माँ भारती अपनी बेटियों की लाशों को हाथ में लिए यूँ ही रोती रहेगी।

CAA / NRCकितना भ्रम कितनी सच्चाई

आज कल पूरे देश में एक शोर सा मचा हुआ है, हर कोई इसी बात की चर्चा कर रहा है, जो कोई भी जितना कुछ भी जानता है बोल रहा है बिना यह सोचे समझे कि इससे क्या फर्क पड़ सकता है। कुछ सच्चाई तो कुछ अफवाह पूरी सच्चाई कुछ ही लोगों को पता है, और जिन्हें पता है, वे या तो उसका राजनैतिक फायदा उठा रहे हैं या चुप है।भ्रम के इस माहौल में सच्चाई का सामने आना जरूरी है, क्योंकि सच वह तलवार होती है जो अज्ञानता और भ्रम के अंधकार को मिटा देती है। इसी अफवाह और भ्रम के जाल में फंस कर न जाने कितने ही युवा आज सड़कों पर उतर आए और ना जाने कितना ही नुकसान कर बैठे उस संपत्ति का जो कि देश की है, जो उनकी अपनी सम्पत्ति है, क्या मिला इससे उन्हें शायद कुछ नहीं क्योंकि वह भी एक भ्रम में हैं, डरे हुए हैं क्योंकि अज्ञानता का अंधकार, भ्रम और डर का साम्राज्य पैदा करता है। तो चलिए देखते हैं क्या है सच्चाई और क्या है भ्रम और इस अज्ञानता के अंधकार को समाप्त कर देते हैं।सबसे पहले हम बात करते हैं CAB अथ़वा CAA की, CAB अर्थात सिटीजन अमेंडमेंट बिल जो कि संसद में पारित होने के बाद बन चुका है CAA अर्थात सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट।सबसे पहले जानते हैं कि आखिर क्यों जरूरत पड़ी एक नए सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट(CAA) की आखिर क्या आवश्यकता थी एक नए नागरिकता संशोधन कानून की।संविधान का अनुच्छेद 5 से लेकर 11 तक नागरिकता को पारिभाषित करता है, इसमें अनुच्छेद 5 से लेकर 10 तक नागरिकता की पात्रता के बारे में बताता है, वहीं अनुच्छेद 11 में नागरिकता के मसले पर संसद को कानून बनाने का अधिकार देता है।यह पहली बार नही है की भारत मे नागरिकता कानून में संशोधन किया गया हो इससे पहले भी ऐसा किया जा चुका है, नागरिकता को लेकर 1955 में सिटीजनशिप एक्ट पास हुआ था। एक्ट में अब तक चार बार 1986, 2003, 2005 और 2015 में संशोधन हो चुके हैं, एक्ट के जरिए केंद्र सरकार के पास ये अधिकार है कि वो किसे भारत का नागरिक माने और किसे नहीं।भारत का नागरिकता कानून 1955 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है, साथ ही यह अवैध रूप से आये प्रवासियों की नागरिकता का विरोध भी करता है।

नागरिकता संशोधन कानून-2019(CAA-2019)

नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है, इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किए गए हैं। कानून पास होने के बाद अब 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता देना का प्रावधान किया गया है।इसके अनुसार पाकिस्तान(शत्रु देश), बांग्लादेश (1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब पड़ोसी देश) एवं अफगानिस्तान(अस्थिर देश) में वहां धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) को जो कि भारत मे वैध या अवैध तरीके से रह रहे हैं, और भारत से सुरक्षा केई उम्मीद रखते है और भारतीय नागरिकता चाहते हैं को भारत की नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है। जिसके लिए नियमो में कुछ छूट (11वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष में नागरिकता) देने का प्रावधान किया गया है।

आखिर क्या है विवाद और क्यों विपक्षी दल हैं इस कानून का विरोध में?

विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।बिल का विरोध यह कहकर किया जा रहा है, कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव कैसे किया जा सकता है?भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी इस विधेयक का ज़ोर-शोर से विरोध हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं एवं इन्हें अपनी सांस्कृतिक पहचान पर खतरा नजर आ रहा है।इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में आकर बसे हुए है और इनकी संख्या अब और ज्यादा बढ़ जाएगी।एक आरोप ये भी है कि मौजूदा सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है।पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक आधार पर होने वाले ज़ुल्म की मार्मिक हक़ीक़त को ध्यान में रखते हुए लोगों को राहत देने की कोशिश करता है।ये भी आरोप है कि सरकार इस विधेयक के बहाने एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए अवैध हिंदुओं को वापस भारतीय नागरिकता पाने में मदद करना चाहती है।

क्या है सरकार का तर्क?

सरकार कहती है कि साल 1947 में भारत-पाक का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था, इसके बाद भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई धर्म के लोग रह रहे हैं, पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक काफी प्रताड़ित किये जाते हैं. अगर वे भारत में शरण लेना चाहते हैं तो हमें उनकी मदद करने की जरूरत है।भारत के उक्त तीनों पड़ोसी देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का संविधान उन्हें विशिष्ट धार्मिक राज्य बनाता है। इनमें से बहुत से लोग रोजमर्रा के जीवन में सरकारी उत्पीड़न से डरते हैं।इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक पद्धति, उसके पालन और आस्था रखने में बाधा आती है। इनमें से बहुत से लोग भारत में शरण के लिए आए और वे अब यहीं रहना चाहते हैं, इन लोगों के वीजा या पासपोर्ट की अवधि भी समाप्त हो चुकी है, कुछ लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं है, लेकिन अगर वे भारत को अपना देश मानकर यहां रहना चाहते हैं तो सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है।सरकार का यह भी कहना है कि इस एक्ट में चूँकि मुसलमान शब्द का प्रयोग तक नहीं किया गया है अतः यह एक्ट किसी भी प्रकार से भारतीय मुसलमानों के अथवा उनके अधिकारों के खिलाफ नहीं है। साथ ही उक्त तीनों देश (पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान) चूँकि अपने अपने अपने संवैधानिक आधारों पर इस्लामिक देश हैं, तथा उक्त देशों में मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक आबादी के रूप में रहता है अतः उक्त देशों के मुसलमान अपने पर किसी प्रकार के अत्याचार के होने की पुष्टि धार्मिक आधार पर कैसे कर सकते हैं।

क्या वास्तव में नागरिकता संशोधन कानून है भारत के संविधान की मूल भावना के खिलाफ

इससे बड़ा असत्य कुछ और नहीं हो सकता है कि नागरिकता (संशोधन) बिल भारत के मूल विचार(संविधान की मूल भावना) के ख़िलाफ़ है, जिसकी बुनियाद हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने रखी थी।नागिरकता (संशोधन) के जिस विधेयक को लोकसभा ने मंज़ूरी दी है, वो 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव करने के लिए है।1955 का क़ानून देश के दुखद बंटवारे और उस बंटवारे के फलस्वरूप बड़ी तादाद में अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लोगों के भारत से पाकिस्तान जाने और पाकिस्तान से भारत आने की भयावाह परिस्थिति में बनाया गया था।जबकि उस समय नए बने दोनों देशों के बीच जनसंख्या की पूरी तरह से अदला-बदली नहीं हो सकी थी, उस समय भारत ने तो धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बनने का फ़ैसला किया. लेकिन, पाकिस्तान ने 1956 में ख़ुद को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया था।ख़ुद को इस्लामिक गणराज्य घोषित करने वाला पाकिस्तान संभवत: दुनिया का पहला देश था। दुनिया का पहला स्वघोषित मुस्लिम देश। पाकिस्तान ने इस ऐलान के साथ ही अपने संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तमाम चेतावनियों को उठा कर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया था। क्योंकि मो. अली जिन्ना की तो 1948 में ही मौत हो चुकी थी।अब धीरे-धीरे पाकिस्तान एक धार्मिक देश में तब्दील होता चला गया। इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में रहने वाले ग़ैर मुस्लिम समुदायों, ख़ास तौर से हिंदुओं और ईसाइयों की मुसीबतें लगातार बढ़ने लगीं।पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिम समुदायों पर ज़ुल्म बढ़े, तो वहां से इन समुदायों के लोगों का फिर से पलायन होने लगा।इन समुदायों के लोगों ने भाग कर भारत में पनाह ली। इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिम समुदायों की कुल आबादी में हिस्सेदारी घट कर दो फ़ीसदी से भी कम रह गई। कहा जाता है कि देश के बंटवारे के बाद क़रीब 47 लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान से भाग कर भारत आए थे।इन हालात में भारत के 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव की ज़रूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। ताकि उन लोगों की मांग पूरी की जा सके, जिन्होंने अपना घर-बार छोड़ कर भारत को अपने देश के तौर पर चुना था।लेकिन अब वे बे-मुल्क के लोग थे, और, अपनी कोई ग़लती न होने के बावजूद यहां शरणार्थी की तरह रहने को मजबूर थे।

और आख़िर में, नागरिकता संशोधन विधेयक-2019

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक आधार पर होने वाले ज़ुल्म की मार्मिक हक़ीक़त को ध्यान में रखते हुए लोगों को राहत देने की कोशिश करता है।धार्मिक आधार पर लोगों पर होने वाले ज़ुल्म एक कड़वी सच्चाई है और ये धार्मिकता के अलावा अन्य वजहों से लोगों के दर बदर होने की मिसालों से अलग भी है। इसी वजह से इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि नए नागरिकता क़ानून में रोहिंग्या मुसलमानों को भी भारत की नागरिकता देने का विकल्प होना चाहिए।रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश म्यांमार की मौजूदा सरकार से शिकायत है, इसके नतीजे में वो कई बार अपनी सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत भी कर देते हैं और सरकार से संघर्ष का नतीजा ये होता है कि कई बार रोहिंग्या मुसलमानों को भाग कर पड़ोसी देश विशेषकर बांग्लादेश में भी पनाह लेनी पड़ती है।बांग्लादेश और म्यांमार के बीच का ये द्विपक्षीय मसला भारत को भी अपनी चपेट में लेता जा रहा है, इसीलिए इस मसले का हल बातचीत से निकाला जाना चाहिए और म्यांमार से भाग कर आए रोहिंग्या मुसलमानों को वहां आराम से बसाया जा सकता है, जहां के वो मूल निवासी हैं।
इस प्रकार यह पूरी तरह साफ़ है कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक धार्मिक आधार पर होने वाले ज़ुल्म से बचने के लिए पलायन और राजनीतिक उठा-पटक की वजह से अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए लोगों में फ़र्क़ करता है।
ये तर्क भी उचित प्रतीत नहीं होता है कि नागरिकता (संशोधन) का ये विधेयक लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम यानी एलटीटीई के आतंक की वजह से श्रीलंका छोड़ कर भारत के तमिलनाडु में शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोगों को कोई राहत नहीं देता है। इसका कारण यह है कि, इन श्रीलंकाई तमिलों ने 2008-09 से पहले के कई दशकों के दौरान भारत में शरण ली थी। फिर भी, बेहतर यही होगा कि सरकार नागरिकता (संशोधन) विधेयक की इन बारीकियों के बारे में आगे चल कर विस्तार से अपना पक्ष रखे।
इसी तरह नागरिकता (संशोधन) विधेयक के बारे में जो दुष्प्रचार किया जा रहा है कि ये मुस्लिम विरोधी है, इसके जवाब में सरकार को बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
इस विधेयक में उन करोड़ों मुसलमानों का कोई भी ज़िक्र नहीं है, जो भारत के नागरिक के तौर पर देश के बाक़ी नागरिकों की तरह अपने अधिकारों का बराबरी से उपयोग कर रहे हैं.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक के ख़िलाफ़ ये राजनीतिक दुष्प्रचार केवल वोट बैंक की राजनीति के लाभ के लिए किया जा रहा है, ताकि देश के माहौल को ख़राब किया जा सके। सरकार को चाहिए कि वो इस सांप्रदायिक असत्य का मज़बूती से फ़ौरन जवाब दे, वरना ये सांप्रदायिक तनाव में तब्दील हो सकता है।नागरिकता (संशोधन) विधेयक के ख़िलाफ़ एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। संविधान का ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।हक़ीक़त तो ये है कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक की मदद से नागरिक बनने वाले सभी लोगों को भारत के दूसरे नागरिकों की तरह बराबरी का अधिकार मिलेगा, जो उन्हें अब तक नहीं मिल पा रहा है।नागरिकता (संशोधन) विधेयक ओवरसीज़ सिटिज़न्स ऑफ़ इंडिया यानी ओसीआई (OCI)कार्डधारकों से जुड़े नियमों में भी बदलाव करेगा. 1955 के नागरिकता क़ानून के मुताबिक़ कोई भी शख़्स जो विदेश में रहता है वो अगर भारतीय मूल का है (मसलन पहले भारत का नागरिक रहा हो या फिर उसके पूर्वज भारत के नागरिक रहे हों, या उस के जीवनसाथी भारत के रहने वाले हों), तो वो अपना नाम ओसीआई के तहत दर्ज करा सकता है. इस वजह से उसे भारत में आने-जाने, काम करने और अध्ययन करने का अधिकार मिल जाएगा, उन पर सरकार और अधिक नियंत्रण भी बढ़ेगा ताकि यदि OCI कार्ड धारक किसी नियम का उल्लंघन करते हैं तो उनका कार्ड/OCI नागरित समाप्त भी की जा सकती है।ये कानून इनर लाइन परमिट (ILP) के दायरे में आने वाले राज्यों पर लागू नहीं होता है। असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी बहुल इलाक़ों (जिन्हें संविधान की 6 अनुसूची के तहत परिभाषित किया गया है) पर लागू नहीं होगा।

अब देखते हैं NRC को, आखिर क्या है NRC?

NRC यानी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। वास्तव में एनआरसी (NRC) अभी केवल असम में ही पूरी तरह लागू हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा।सरकार पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल (NRC Bill) एक रजिस्टर है जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। बता दें कि एनआरसी की शुरुआत 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में असम में हुई थी। फिलहाल यह असम के अलावा किसी अन्य राज्य में लागू नहीं है।

एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या क्या दस्तावेज़ जरूरी है?

भारतीय संविधान में नागरिकता को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं।इसके अनुसार यह दस्तावेज अपके पास होने अनिवार्य हैं-लिस्ट A में मांगे गए मुख्य डॉक्युमेंट्स इस प्रकार हैं.(1) 1951 की एनआरसी में नाम(2) 24 मार्च 1971 से पहले मतदाता सूची में नाम(3) जमीन और काश्तकारी के कागज(4) नागरिकता प्रमाणपत्र(5) स्थायी निवास प्रमाणपत्र(6) रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र(7) पासपोर्ट(8) एलआईसी(9) सरकार द्वारा जारी कोई भी प्रमाणपत्र या लाइसेंस(10) सरकारी नौकरी के कागज(11) बैंक/डाकघर में खाता(12) जन्म प्रमाणपत्र(13) बोर्ड/यूनिवर्सिटी के प्रमाणपत्र(14) कोर्ट से जुड़े दस्तावेजअगर पहली लिस्ट वाले दस्तावेज आपके पास उपलब्ध नहीं हैं अथवा आपके नाम से न होकर आपके माता/पिता/दादा/दादी (द्विवंगत) आदि में से किसी के नाम हैं तो दूसरी लिस्ट के इन कागजात की जरूरत पड़ेगी।लिस्ट B में शामिल मुख्य डॉक्युमेंट्स(1) जन्म प्रमाणपत्र(2) जमीन के कागज(3) बोर्ड/यूनिवर्सिटी के प्रमाणपत्र(4) बैंक/एलआईसी/डाकघर के रिकॉर्ड(5) अगर महिला शादीशुदा है तो सर्किल आफिसर/पंचायत सचिव द्वारा जारी प्रमाणपत्र(6) मतदाता सूची में नाम(7) राशन कार्ड(8) कोई अन्य कानूनी रूप से मान्य दस्तावेज

क्या है NRP और यह NRC से कैसे अलग है

NPR यानी NATIONAL POPULATION REGISTER एक ऐसा रजिस्टर है, जिसमें नागरिकों की जनगणना से संबंधित आंकड़ों का ब्योरा लिखा जाना है, इसकी शुरुआत 2010 में की गई थी। यह 1951 वर्ष से ही प्रति 10 वर्षों में होने वाली जनगणना का ही एक स्वरूप है(ज्ञातव्य है कि भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में लॉर्ड मेयो के शाशनकाल में की गई थी)। जिसमें नागरिकों को किसी तरह के दस्तावेज दिखाने की कोई भी अनिवार्यता नहीं है।यह एक नियमित अंतराल पर होने वाली गणना है जो प्रति 10 वर्षों में संपन्न की जाती है अतः किसी भी प्रकार की अफवाह से बचे और में मांगी गई सूचना निःसंकोच दे ताकि सरकार आपकी सही जानकारी प्राप्त करके योजनाएं बनाते वक्त नागरिकों की वास्विक स्थिति से परिचित हो सके।अतः NPR का किसी भी प्रकार से NRC से कोई भी संबंध नहीं है। जहां NRC का मकसद भारतीय नागरिकों की पहचान करने से जुड़ा है, वहीं NPR का उपयोग देश में रहने वाले लोगों की परिस्थितियों की जानकारी से जुड़ा डाटाबेस तैयार करने से संबंधित है।उपरोक्त लेख में हमने नागरिकों के लिए हर संभव जानकारी सरल शब्दों में उपलब्ध किए जाने का पूर्ण प्रयास किया है, किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम सम्पूर्ण टीम की ओर से क्षमप्रार्थी हैं।
सभी पाठकों से अनुरोध है के कृपया किसी भी प्रकार की अफवाह से बचे और अधिक से अधिक जागरूकता का प्रसार करने का प्रयास करे।🙏🇮🇳🙏

नया साल नई जिद

हर साल की तरह इस बार भी नव वर्ष पर हम सबने खूब enjoy किआ सभी दोस्तों, रिश्तेदारों को बधाई दी, पार्टी मनाई कुछ एक दोस्तो ने नए संकल्प भी किये जिन्हें शायद एक सप्ताह या एक महीने में सभीभूल जाएंगे और फिर उसी पुरानी दुनिया मे लौटजाएंगे। बेरंग उदासी और निराशा से भरी जिंदगी। हम में से लगभग हर कोई उसी पुराने ढर्रे पर चलनेवाला है जैसा कि ऊपर लिखा है। पर कुछ लोग,लाखों करोड़ों में से कुछ लोग जिंदगी को नए सिरे सेजीना शुरु करेंगे इस साल के खत्म होने पर हम देखेंगेके कुछ लोग ऐसे भी निकल कर आएंगे जिन्होंने सफलता की नई बिसात लिखी है।

हम में से बहोत से लोग उनके बारे में पढ़ेंगे थोड़े वक्त के लिए motivate भी होंगे पर फिर भूल जाएंगे। कभी सोचा है हम उन कुछ लोगों में से एक क्यों नहीं बन पाए, शायद ही कोई सोचेगा। पर मेरे दोस्तों, मेरे भाइयों अभी नहीं तो कभी नहीं।

ये वो चंद लोग होंगे जो पीछे मुड़कर नहीं देखते अपनी गलतियों से सीखते हैं और नई राह, नई दिशा की ओर बढ़ते चले जाते है किसी की नहीं सुनते जिद के पक्के और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चयी होते हैं तो चलो मेरे साथ आप भी एक बार उठो एक बार जिद्दी हो जाओ दुसरो की बातें जो हमे निराशा की ओर ले जाती हैं जो हमे कमजोर करती है को सुनना बन्द कर देते हैं। रिश्तेदारों मोहल्ले वालों जान पहचान वालों को जवाब अब हम नहीं हमारी सफलता देगी।

सबसे पहले देखते ऐसे कुछ लोग जिन्होंने पिछले साल तक यानी सन 2019 तक अपनी जिद नहीं छोड़ी और आज हम उनके बारे में पढ़ रहे हैं, और वादा करते है खुद से कि अगले नव वर्ष तक हम कुछ ऐसा करके दिखाएंगे ताकि हमारी जिद पूरी हो सके और अब लोग हमारे बारे में पढेंगे।

  • श्रवण और संजय कुमारन –

महज 17 और 15 साल की आयु के भारत के सबसे युवा उद्यमी (youngest entrepreneurs of India) भाइयों की जोड़ी ने समाज सेवा भावना से प्रेरित होकर वर्ष 2011 में जब वे क्रमशः 14 और 12 वर्ष की आयु में जब बच्चे दादी नानी की कहानियों, कार्टून चैनल देखने मे अपना वक्त बर्बाद करते है, इन दोनों नें GoDonate नाम की app का निर्माण किया जो कि स्थानीय स्तर पर भोजन को दान करने का प्लेटफार्म उलब्ध करती है। इस प्रकार ये दोनों भाई भारत के सबसे युवा मोबाइल android/ios app डेवलपर बनने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं।

संजय कहते हैं, “हमने हमेशा माना है कि हमें समाज समाज के लिए कुछ करना चाहिए,” अपने नवीनतम app GoDonateके पीछे की सोच पर, जो स्थानीय स्तर भोजन को दान करने की सुविधा प्रदान करता है जो भोजनअक्सर बर्बाद हो जाया करता है। श्रवण कहते हैं,”मध्य एशिया में ही, हरसाल लगभग 500 मिलियनटन भोजन बर्बाद हो रहा है।” इन लड़कों के द्वारा,सामाजिक कल्याण की उनकी परियोजनाओं के पीछे एक महत्वपूर्ण कहानी छिपी है। प्रारम्भ में वह, और उनके पिता, जो अपने स्वयं के प्रयासों से शार्क टैंक के रूप में फंडिंग करके, इस छेत्र में काम करते थे। किंतु अंत मे उनके पिताजी ने इस विषय मे सहायता करने से इनकार कर दिया तब इन लड़कों ने स्वयं कुछ करने का निर्णय किआ और आज इनके प्रयास का परिणाम हम GoDonate के रूप में हम सबके सामने है।

उनका मिशन दुनिया के कम से कम आधे डिजिटल फोन पर अपने app इंस्टॉल करना है। इन दोनों ने पहले से ही 11 ऐप विकसित किए हैं, जिनके 60 देशों में लगभग 60,000 डाउनलोड हैं ! 2017 में, उन्हें फोर्ब्स 30 अंडर 30 में सूचीबद्ध किया गया था साथ ही TedxTalk के साथ स्टेज शेयर करने का अवसर प्राप्त कर चुके है इतनी छोटी सी आयु में IIM-B में अपनी प्रेजेंटेशन दे चुके हैं।

  • सृष्टि जयंत देशमुख

तुम लड़की हो तुमसे नहीं होगा, पढ़कर क्या करोगी लड़की हो लड़की की तरह रहो, अपनी हद में रहो। हमारे देश की बहोत सारी लड़कियों ने अक्सर इनमे से कोई न कोई ताना कोई न कोई बात सुनी ही होगी, पर दोस्तो वो जमाना गया जब लड़की कमजोर समझी जाती थी आज कल की लड़कियां अपनी सफलता की नई इबारत लिख रही हैं, उनमे से एक बहोत ही महत्वपूर्ण नाम है सृष्टि जयंत देशमुख का जिन्होंने UPSC Civil Service Exam 2019में लड़कियोंमें प्रथम व देश में5वाँ स्थान हासिल किआ है।

एक बेहद सामान्य परिवार से आने वाली सृष्टि ने अपनी IAS officer बनने की जिद को कभी नही छोड़ा और कोचिंग के अलावा इंटरनेट इत्यादि से भी मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए अपनी मंजिल को हासिल किया। महज 23 साल की उम्र में IAS officer बनने वाली सृस्टि ने अपनी मेहनत प्रतिभा और सफलता हासिल करने की जिद से एना लक्ष्य हासिल करके एक महत्वपूर्ण कीर्तिमान हासिल किआ।

  • रोहित कश्यप-

मात्र 17 वर्ष की आयु के रोहित मैत्री स्कूल ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप के संस्थापक और CEO हैं। उन्होंने बिहार के छोटे शहर से अपनी यात्रा शुरू की, जहां उनके पास समुचित संसाधन नहीं थे, फिर भी उन्होंने ओलंपियाड्स को पास करने में कामयाबी हासिल की और ICAI कॉमर्स विजार्ड में 1000 वें स्थान पर रहे।

रोहित Quora पर एक इन्फ्लुएंसर भी है और लाखों लोग नियमित रूप से उसके जवाब पढ़ते हैं। उन्होंने अपना पहला स्टार्टअप तब शुरू किया जब वह महज 14 वर्ष की आयु के थे आईटी मंत्री रविशंकरप्रसाद सहित कई कैबिनेट मंत्रियों ने उनके काम की प्रशंसा कर चुके हैं।

अपने संस्थान में रोहित कश्यप आपके साथ जुड़ेंगे अपने संस्थान में रोहित कश्यप आपके साथ जुड़ेंगे और आपको कदम कदम पर उद्यमिता के बारे में पूरी बातें सिखाएंगे जिसमे आप Setting, Growing and Scaling Startup आदि सभी प्ररूपों को विस्तार से समझ सकते हैं। जिसमे रोहित स्वयं के द्वारा बनाये गए vedio उपलब्ध कराते है और विभिन्न प्रकार के tasks पूरे करवा कर प्रैक्टिकल knowledge दी जाती है।

  • अरुणिमा सिन्हा

अरुणिमा सिन्हा आज किसी परिचय की मोहताज नही हैं। राष्ट्रीय स्तर की बास्केट बॉल खिलाड़ी रह चुकी अरुणिमा ने एक ट्रेन यात्रा के दौरान आपराधिक प्रवत्ति के लोगों से सामना हुआ जिनका इन्होंने जमकर सामना किया किन्तु ट्रैन से फेंक दिए जाने के कारण अरुणिमा ने अपना एक पैर खो दिया लेकिन अपने हौसले को कभी कम न होने दिया कृतिम पैर लगाकर दोबारा बास्केटबॉल की प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन इनको अहसास हुआ कि लोग इनको अब दया की नजर से देखने लगे है तो इन्होंने अब कुछ तूफानी करने का फैसला किया।

भारत की पहली माउंट एवेरेस्ट फतह करने वाली महिला ट्रैकर बछेंद्री पाल से माउंटेन ट्रैकिंग की ट्रेनिंग ली और वर्ष 2013-14 में माउंट एवेरेस्ट पर तिरंगा फहराया। अरुणिमा उसके बाद भी नही रुकी और अब तक वो सातों महाद्वीपों की सभी सर्वोच्च पर्वत शिखरों पर तिरंगा लहरा चुकी हैं।

  • हिमा दास-

अब बात करते हैं वर्ष 2019 की सबसे चर्चित खिलाड़ी की, जी हां हम बात कर रहे हैं गोल्डन गर्ल हिमा दास की। हिमा दास. 19 साल की उम्र. महीने भर में 5 गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। यूरोप के अलग-अलग शहरों में हुई अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में. किसी भी ग्लोबल ट्रैक इवेंट में गोल्ड का तमगा झटकने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी। एले इंडिया, फेमिना, वोग जैसी मैगजीनों के कवर पर चमकने वाली लड़की। जहां तक पहुंचने के लिए सुंदरता के मानक तय हैं, हिमा ने उन मानकों को चुनौती दी है। अपनी जगह हासिल की है, अपने हुनर के दम पर।
हिमा दास का घर देश की राजधानी से दो हजार किलोमीटर से अधिक दूर है। असम के नागौन जिले का धींग गांव आज हिमा दास के कारण गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकल आया है। हिमा का जन्म 9 जनवरी 2000 को हुआ। 17 लोगों का परिवार है, पूरा परिवार धान की खेती करता है, हिमा ने भी अब तक के जीवन का लंबा हिस्सा खेतों में बुआई और निराई करते बिताया है, रंजीत और जोनाली (हिमा के माता पिता) के 6 बच्चों में सबसे छोटी हिमा की उपलब्धियां बेजोड़ हैं।

हिमा दास का इरादा फुटबॉलर बनने का था, स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। मैदान में उनकी फुर्ती देखकर एक टीचर ने एथलेटिक्स में करियर बनाने की सलाह दी। हिमा ने अपने गुरु की सलाह मानी। एथलेटिक्स (रेसर बनना) चुना और ठान लिया एक जिद बना ली सबसे तेज होने की जिद। हिमा इस कला की बेताज बादशाह बनना चाहती थी। उन्होंने प्रयास करना नही छोड़ा और आज उनकी ये जिद सारे देश का नाम रोशन कर रही हैं।

देखा आपने, कैसे हम अपनी जिद को अपनी सफलता का साधन बना सकते हैं, तो उठिये और वादा कीजिये खुद से के आज से मैं भी एक जिद पालूंगा और किसी भी हालत में उस जिद को पूरा करूँगा चाहे जो कुछ भी हो जाये चाहे रास्ते मे कितनी भी रुकावटें क्यो न आये मेरी जिद पूरी होनी ही है और उसके लिए मैं भरपूर मेहनत करूँगा। वादा कीजिये खुद से और बदल दीजिये इतिहास को।